सोचा था पनाह ले रही होगी...
तेरी पलकों के निचे मोहब्बत मेरी...
पर वो भी शायद किश्मत को मंजूर नही है...
ख्वाहिश थी की तुम्हारे संग जिंदगी बीत जायेगी...
पर क्या पता था...यह ज़िद भी हमारी नाकाम हो जायेगी...
खामोशियां काट रहे थे हम तो जमाने के डर से...
पर क्या पता था रूसवा हो जाओगेँ तूम हम से...
खुशियां आजकल मेरे बस में नही है...
मेरी चाहत से वाकिफ हो तो जरा सून...
मेरी तरह एक मोहब्बत तू भी चून...
कितना दर्द होता है, जब कोई अपना रूठ जाता है...
लगता हे जैसे जिंदगी का कोई सपना टूट जाता है...
खुशिया आजकल मेरे बस में कहा है...
तुझे अपनी मोहब्बत कहु अब ये मेरे हक में कहा है...
बस इतना सा सुन ले तू, ऐ मेरी चाहत...
कहनी है तुमसे दिल की जो, वो बात जरुरी लगती है...
अब तुम्हारेे बिना मेरी गज़लों में , हर बात अधूरी लगती है...
अब ये खुशिया मेरे बस में कहा है...
© उपरोक्त रचना के सर्वाधिकार लेखक एवं अक्षय गौरव पत्रिका पत्रिका के पास सुरक्षित है।
लेखक पत्रकारिता से जुड़े हुए है और सरदारपुर जिला धार (म.प्र.) के रहने वाले है।
लेखक से मोबाइल नंबर 077488 77116 और ई-मेल rprajapati19395@gmail.com
पर संपर्क किया जा सकता है।
लेखक से मोबाइल नंबर 077488 77116 और ई-मेल rprajapati19395@gmail.com
पर संपर्क किया जा सकता है।
© उपरोक्त रचना के सर्वाधिकार लेखक एवं अक्षय गौरव पत्रिका पत्रिका के पास सुरक्षित है।
POST A COMMENT :