मत बाँटों हमें हिन्दू और मुस्लमान में,
मत बाँटों हमें दलित और राजपूतान में,
हम तो रहते हैं एक दूसरे के स्वाभिमान में,
और ह्रदय हमारा धड़कता है सिर्फ हिन्दुस्तान में।
पहचान नहीं है जाति-धर्म हमारी,
ना पहचान है रंग रक्त का,
जानते हैं दुनिया वाले हमें, सिर्फ भारत के वंश का,
जब-जब दुनिया ने हमें ललकारा है,
हमने उसकी हस्ती को इस धरा से मिटाया है।
तुम क्यों ये मकड़जाल हमपर फेंक रहे हो,
जाति धर्म में हमें क्यों बाँट रहे हो,
अपनी वोटों की खातिर,
हमारी खून पर रोटी क्यों सेंक रहे हो,
वक्त है समेट लो अपनी संकुचित मानस को,
गर, हम जो अपने पर आ गये,
शपथ है हमारे अराध्यों की,
न तुम्हें कफन न श्मशान मिलेगा,
न तुम्हें आबरू न पहचान मिलेगा।
धिक्कार है तुम्हारी मानसिकता पर,
धिक्कार है तुम्हारी अंतरात्मा पर,
वोट की खातिर,
रहिम को राम से,
करतार को सुलेमान से,
आशीष को उसके पहचान से,
जुदा कर रहे हो।
अरे मुर्खों; भाई से भाई कभी जुदा नहीं होते,
लड़ते झगड़ते हैं एक दूसरे से,
गर, तीसरा आ आये,
छिन्न कर देते हैं उसके गिरेबान को,
हमारी एकता ही हमारी पहचान है,
हमारी एकता ही हमारी शान है,
गर, हम जो अपने पर आ गये,
शपथ है हमारे भारतीय संस्कार का,
मिटा देंगे तुम्हारी हस्ती,
न तुम्हें कफन न श्मशान मिलेगा,
न तुम्हें आबरू न पहचान मिलेगा।
लेखक अक्षय गौरव पत्रिका के प्रधान संपादक है अौर आप सामाजिक, साहित्यिक तथा शैक्षिक परिवेश पर लेखन करते हैं। आपसे E-Mail : asheesh_kamal@yahoo.in पर सम्पर्क किया जा सकता है।
© उपरोक्त रचना के सर्वाधिकार लेखक एवं अक्षय गौरव पत्रिका पत्रिका के पास सुरक्षित है।
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