
1
कुछ आगे बैठे नेहरू है
कुछ पीछे दुबके कलाम है
इस प्रांगण के हर कक्ष में
भारत का भविष्य विराजमान है
कुछ बीच के टाटा है
हर विषय के ज्ञाता है
कुछ शिक्षकों के प्रिय विद्यार्थी
तो कुछ हमेशा क्षमा के प्रार्थी
इस विद्यालय के आंगन में खेलते
भारत के भाग्य विधाता है”
2
“घर वो जा चुके है
जो रहते थे यहां
अब मुझे घर नही
वो कहते है मकाँ”
“सुनसान हुए स्थान को एकांत करते है
मेरी चौखटों में दीमक
और दरवाजो पर ताले लटकते है
ये मकड़ी और छिपकली
आजकल मुझे अपना घर समझते है”
“इस आंगन में तुलसी उगी थी
चंपा चमेली संग संग खिली थी
वहां अब दूर तलक दूब बिछी है,
जिसमे कुछ घरेलू, कुछ जंगली है”
देवेश प्रधान युवा कवि है जो वर्तमान में मेरठ में निवास कर रहे है। आपसे 8979353969 पर सम्पर्क किया जा सकता है।
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