
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
मैं नहीं
वो विचार! मंदित
लहरों में होकर
बहूँ!
तेरी टूटी!
मेखला पर
मिथ्या ही मैं
गर्व करूँ!
तेरे बताये!
मार्ग का मैं
अंध ही
अनुसरण करूँ!
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
तूँ बताये
देशद्रोही!
लज्ज़ा का
अनुभव करूँ!
स्याह में! तूँ
कूट रचता
श्वेत उसको
मैं करूँ!
स्वतंत्र! मेरी
लेखनी
जंज़ीरों में
क्यूँ? पडूँ!
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
ज्ञात है!
धिक्कारतें हैं
साहित्य के
वे माननीय!
छत्रछाया!
पाने को, उनकी
बेवज़ह ही
क्यूँ? मरुँ!
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
साहित्य स्वर्णिम!
इस समाज में
विद्रोही!
कहते मुझे
पाने को
विलक्षण उपाधि!
सत्य से मैं
क्यूँ ? डिगूँ!
कुछ कहेंगे
वाह! वाह!
बहुधा कसेंगे
व्यंग ख़ूब!
जनमत जुटाने के लिये
झूठे सेतु, क्यूँ? गढ़ूँ!
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
लेखनी!
जन्मी है,मेरी
काल परिवर्तन
के लिए,
उत्परिवर्तन की
बात हो तो
बात मैं
क्यूँ? ना कहूँ!
सूर्य उगता !
देखने की
प्रत्येक मनुष्य
इच्छा करे!
लेखनी का
वीर हूँ, मैं
सूर्यास्त का ही
दम भरूँ!
मैं नहीं
वो काल! कल्पित
जो इशारों पर
लिखूँ!
ध्रुव सिंह एक युवा कवि व ब्लॉगर है अौर ‘एकल्वय’ नाम से ब्लॉग लिखते है। आपसे E-Mail : dhruvsinghvns@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।
© उपरोक्त रचना के सर्वाधिकार लेखक एवं अक्षय गौरव पत्रिका पत्रिका के पास सुरक्षित है।
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